जब हम किसी व्यक्ति को किन्हीं मामलों में अपना विश्वास समर्पित करके उससे यह उम्मीद करते हैं कि वो इस विश्वास की लाज रखेगा और वो व्यक्ति हमारे उसी विश्वास के टुकडे़-टुकड़े कर देता है, उसे ही विश्वासघात या धोखा कहते हैं...
दोस्तो ,
जब भी कोई हमें अपना विश्वास समर्पित करता है तो वह हम पर ईश्वर जितना भरोसा करता है, हमें उसके इस भरोसे का, विश्वास का मान रखना चाहिए.
जिस व्यक्ति को Life में धोखा मिलता है उसके लिए पुन:(again )किसी पर भरोसा कर पाना मुश्किल और कभी-कभी नामुमकिन ( impossible) हो जाता है.
धोखा दो प्रकार का होता है..
1.धोखा....इस प्रकार के धोखे में विश्वास करने वाले ने भी कुछ चालांकियां की होती हैं. सारी गलती भरोसा तोड़ने वाले की नहीं होती. मगर इस तरह के धोखे में भरोसा करने वाला धोखे की उम्मीद नहीं करता है.
2....विशुद्ध धोखा..
इस प्रकार का धोखा जिस व्यक्ति को मिलता है
उसमें उसकी ज़रा सी भी गलती नहीं रहती है.. उसने पूरे समर्पित भाव से विश्वास किया होता है...
जब भी हमें धोखा मिले तो स्वयं को या धोखा देने वाले को दोषी ठहराने के बजाय हमें धोखा देने वाले का धन्यवाद देना है..
क्योंकि हमारे वश में भरोसा करना था हमने किया ,उसको(भरोसा तोड़ने वाले को) जो करना था उसने किया...
नाचना,आह्लादित होना,प्रफुल्लित होना....और उस धोखे की घटना को मुक्त मन से पी लेना...
आपको प्रतीती होगी कि जीवन के पूर्ण रूप से खिलने में ऐसी परिस्थितियों का भी विशेष योगदान है... ऐसी परिस्थितियों का आना भी ज़रूरी और स्वाभाविक है.......
0 comments:
Post a Comment