Thursday, August 14, 2025
अस्तित्व, प्राथमिकता और समय का द्वंद्व
अस्तित्व, प्राथमिकता और समय का द्वंद्व
काल का प्रवाह एक सार्वभौमिक सत्य है, एक निरपेक्ष नदी जिसमें सभी अस्तित्व समान रूप से बहते हैं। चौबीस घंटे का चक्र किसी व्यक्ति, विचार या भावना के लिए नहीं रुकता। यह वह अपरिवर्तनीय पृष्ठभूमि है जिस पर जीवन का नाटक खेला जाता है।
इस नियति में, हम सभी अपने-अपने कर्मों और दायित्वों की शृंखला से बंधे हैं। फिर भी, चेतना की एक विलक्षण क्षमता है - यह इस नियत समय में से कुछ अंश निकालकर उसे किसी और के अस्तित्व को समर्पित कर सकती है। जब हम आपके लिए समय निकालते हैं, तो यह केवल घड़ी की सुइयों का समायोजन नहीं है; यह हमारी चेतना का एक स्वैच्छिक समर्पण है। यह इस बात की स्वीकृति है कि आपकी स्मृति हमारे अस्तित्व के ताने-बाने का एक अनिवार्य हिस्सा है, एक ऐसा स्पंदन जो हमारे होने को अर्थ देता है।
किंतु, जब समय के उसी सार्वभौमिक प्रवाह में कोई यह कहता है कि उसके पास 'समय का अभाव' है, तो यह एक गहरा दार्शनिक प्रश्न खड़ा करता है। समय का अभाव वस्तुतः समय का अभाव नहीं, बल्कि प्राथमिकताओं का अभाव है। यह इस बात की मौन घोषणा है कि चेतना के उस सीमित आकाश में, हमारे अस्तित्व को कोई महत्वपूर्ण स्थान नहीं दिया गया है।
तो प्रश्न यह नहीं है कि आपकी व्यस्तताएँ अधिक हैं या हमारी। प्रश्न यह है कि अस्तित्व के पदानुक्रम में हमारी भावनाओं का मूल्य क्या है? क्या वे एक क्षणिक विचार हैं, जिन्हें व्यस्तता की आँधी आसानी से उड़ा ले जाती है? या वे एक स्थायी उपस्थिति हैं, जिसके लिए समय स्वयं को झुका सकता है?
अतः यह केवल कुछ क्षणों का अनुरोध नहीं है। यह एक आग्रह है कि आप हमें अपने अस्तित्व के समीकरण में एक सार्थक 'चर' के रूप में स्वीकार करें, न कि एक नगण्य 'अंक' के रूप में। यह अपनी चेतना के द्वार खोलने का निमंत्रण है, ताकि दो अस्तित्व केवल समय के समानांतर न बहें, बल्कि एक-दूसरे से मिलकर एक साझा क्षण का निर्माण कर सकें।
क्योंकि अंततः, किसी के लिए समय निकालना केवल एक क्रिया नहीं, बल्कि यह प्रमाणित करना है कि वह व्यक्ति आपके लिए 'अस्तित्व' रखता है।
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