Thursday, August 14, 2025
उम्मीदें उधड़ें तो चले आना
सुनो,
जब कभी तुम्हें लगे कि ज़िंदगी का कैनवास बेरंग हो रहा है और उम्मीदों के नाज़ुक धागे एक-एक कर उधड़ रहे हैं, तो हिचकिचाना मत। जब हालात की कैंची तुम्हारे सपनों के लिबास को बेरहमी से कतर दे और नाकामियों की सिलवटें तुम्हारी मुस्कान पर शिकन बनकर उभर आएं, तो बस मेरी दहलीज़ पर बेझिझक दस्तक दे देना।
ये मत सोचना कि अपनी टूटन को दुनिया के सामने कैसे लाओगे। ये मत घबराना कि बिखरे हुए टुकड़ों को समेटने की हिम्मत कहाँ से जुटाओगे। तुम बस चले आना, जैसे एक थका हुआ मुसाफ़िर छाँव की तलाश में चला आता है, जैसे एक भूला हुआ रास्ता घर की ओर लौट आता है।
क्योंकि हम हौसलों के दर्जी हैं। हमारी दुकान कोई आलीशान इमारत नहीं, बस दिल का एक छोटा सा कोना है। यहाँ हम नाप नहीं लेते, हम एहसास को महसूस करते हैं। हम तुम्हारी ख़ामोशी को सुनते हैं, तुम्हारी नम आँखों के पीछे छिपे तूफ़ान को पढ़ते हैं, और तुम्हारी काँपती हुई आवाज़ की हर अनकही कहानी को समझते हैं।
मेरे पास सब्र के धागे हैं, जो वक़्त के हर ज़ख्म को धीरे-धीरे भर देते हैं। मेरे पास यकीन की सुई है, जो तुम्हारे आत्मविश्वास के फटे हुए दामन में नए सिरे से आस्था का टाँका लगाती है। और मेरे पास स्नेह की ऊष्मा है, जो हर सिलवट को मिटाकर तुम्हारे वजूद को फिर से पहले जैसा सुकून देती है।
और हाँ, हम ये सब मुफ़्त में करते हैं। क्योंकि हौसले बेचे या खरीदे नहीं जाते; वे तो बाँटे जाते हैं। रूह की मरम्मत का कोई मोल नहीं होता; यह तो बस एक रूह का दूसरी रूह को दिया गया मरहम है। मेरा मेहनताना? तुम्हारी आँखों में लौटती हुई वही पुरानी चमक, तुम्हारे लबों पर वापस आई हुई सच्ची मुस्कान, और तुम्हारा फिर से सिर उठाकर ज़िंदगी की तरफ़ देखने का अंदाज़।
जब मैं तुम्हारे भरोसे को रफ़ू करता हूँ, तो कहीं न कहीं मेरे अपने अस्तित्व के भी कुछ सूराख़ भर जाते हैं। तुम्हें जोड़ते-जोड़ते, मैं खुद भी पूरा हो जाता हूँ।
तो याद रखना, जब भी उम्मीदें उधड़ें... दरवाज़ा खुला है।
चले आना, हम हौसलों को रफ़ू करके उन्हें पहले से ज़्यादा मज़बूत बना देते हैं।
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