मैं नारी हूूूं, मैं माता हूूूं,
मैं पन्नाधाय की गाथा हूूूं।
जिससे है संपूर्ण जगत,
मैं ऐसी जननी विधाता हूूूं।।
मैं बेटी हूूूं,मैं माता हूूूं,
मैं बलिदानों की गाथा हूूूं।
मैं लक्ष्मी हूूूं,मैं सीता हूूूं,
मैं श्रीमद्भागवत गीता हूूूं।।
राह अकेली चलने में,
दिल मेरा घबराता है।
कहाँ?गया वह गिरधारी,
जो लाज बचाने आता है।।
इस दुनिया ने मुझसे कैसा,
अपना स्वार्थ लगाया है।
कभी आग में कूदा दिया,
कभी जुएं का खेल बनाया है।।
न तुम केवल अस्तित्व हो,
सम्पूर्ण जगत के नभ तल में।
मैं ऋणी हो गया पहले ही,
जब जन्म दिया इस भू-तल में।।
नारी एक कोमल काया है,
जो मानवता की छाया है।
मत करो मलिन इस पवित्र रुप को,
जिसने संसार दिखाया है।।
तू शक्ति बनी,तू भक्ति बनी,
तू दुर्गा बनी,तू काली बानी।
छाया अंधेरा जब जग में,
तू सूर्योदय की लाली बनी।।
गीत हूूूं मैं,संगीत हूूूं मैं,
माँ की ममता की प्रीत हूूूं मैं,
जिसने जग को सुरीला बना दिया,
ऐसी आलोक का गीत हूूूं मैं।।
(संकलित)
सभी मातृशक्ति को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
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